Thursday, April 19, 2012

हसरत का कीड़ा


हर इन्सान में एक कीड़ा होता हे
सिलवटे, शिकायतें हर पल रोता हे
मिसरी सी यादो पे नमक छिड़कता
बिखरे कुछ  सपने आंसू में बोता हे

नगद इरादे, उधार बुनियादें  
कटौती में सिमटती हे उसकी मुरादें
मनाता हे पेहले मन्नत का मातम
फिर शहादत का जुलुस होता हे


No comments:

Post a Comment