Tuesday, November 11, 2014

सपनो की चिंगारी



सपनो की चिंगारी जलाने चले हम
बादल  मुट्ठी में पाने चले हम
मंजिल की हम को फिकर नहीं है
राहों को गले लगाने चले हम

सोया है सूरज, जगाने चले हम
अँधेरा जड़ से मिटाने चले हम
अंगारे हमें क्या खाक जलाएँगे
मौत को रिश्वत खिलाने चले हम

रूठी है वो, मनाने चले हम
किस्मत अपनी पटाने चले हम
लकीरे हाथो की कम पड़ गई थी
नई लकीरे बनाने चले हम

क़यामत से कदम मिलाने चले हम
चट्टानें इरादों से पिघलाने चले हम
क्या पता लहेरो को, डराने चली है
कश्ती में समंदर डुबाने चले हम