सपनो की चिंगारी जलाने चले हम
बादल मुट्ठी में पाने चले हम
मंजिल की हम को फिकर नहीं है
राहों को गले लगाने चले हम
सोया है सूरज, जगाने चले हम
अँधेरा जड़ से मिटाने चले हम
अंगारे हमें क्या खाक जलाएँगे
मौत को रिश्वत खिलाने चले हम
रूठी है वो, मनाने चले हम
किस्मत अपनी पटाने चले हम
लकीरे हाथो की कम पड़ गई थी
नई लकीरे बनाने चले हम
क़यामत से कदम मिलाने चले हम
चट्टानें इरादों से पिघलाने चले हम
क्या पता लहेरो को, डराने चली है
कश्ती में समंदर डुबाने चले हम
Hi
ReplyDeleteLiked the thought in last stanza.. kashti mein saumndar dubone chale hum..
Keep writing..