Saturday, December 24, 2011

पाखंडी

मिस्किन को दाना नहीं
आमिर जशन मनाते हे
भूखा बस तू ही सोए
पत्थर भी भोग लगाते हे.

बसर करने तुजे छत नहीं
कुछ वाडो में रौफ जमाते हे
सिरात पे तू ही भटके
कुक्कुर भी पाले जाते हे.

बदनाम यहाँ रोटी के चोर
गद्दार खुले गुर्राते हे
मौत बस तेरे माथे
कसाब रहम को पाते हे.

बापू का कोई मोल नहीं
ईमान से सब कतराते हे
जिस गाँधी की तू बात करे
नोटों में नापे जाते हे. 

सिने पे तिरंगा जो लिपटे
कोहरे तुज पे बरसाते हे
वतन का इनको ज़स्बा नहीं
तहज़ीब का शौक मनाते हे.

मंदिर को जो मस्जिद बोले
तुजको पाखंडी बताते हे
वो फ़ोकट तेरी भक्ति करे
जो राम-रहीम जलाते हे.

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